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गोस्वामी तुलसीदास जी का संझिप्त परिचय
गोस्वामी तुलसीदास का अवतरण ऐसे काल में हुआ जब हिन्दू समाज गहरी निराशा में डूबा हुआ था। मध्य एशिया के बर्बर और खूंखार मुगलों ने भारत पर लगातार आक्रमण अपनी सत्ता स्थापित कर ली थी। हिन्दुओं को अपमानित कर उनका तलवार के बल पर धर्म परिवर्तन किया जा रहा था। इन कठिन परिस्थितियों में तुलसीदास ने भगवान राम की भक्ति और शक्ति को पुनर्जीवित कर हताश और निराश हिन्दुओं के हृदय में गौरवपूर्ण स्वाभिमान जागृत कर दिया था।गोस्वामी तुलसीदास
बाबा वेणी माधवदास कृत ‘मूल गोसाई चरित्र’ के अनुसार तुलसीदास की जन्मतिथि सम्वत् 1554 श्रावण शुक्ल सप्तमी है। इनका जन्म बांदा (उ.प्र.) के राजापुर में एक सरयूपारी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका जन्म अभुक्तमूल में हुआ था। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसमें बच्चे का जन्म लेना अशुभ माना जाता है। इस कारण जन्म लेते ही माता-पिता ने इन्हें त्याग दिया था। मुनिया नाम की दासी ने पाँच वर्ष तक इनका पालन किया। मुनिया की मृत्यु के बाद बाबा नरहरि दास ने इन्हें अपने पास रख इनका विधिवत नामकरण तुलसीदास किया। वे तुलसीदास को लेकर काशी चले गये, वहाँ इन्होंने तुलसीदास को 15 वर्षों तक शिक्षा दी तथा वेद, पुराण, उपनिषद, दर्शन, इतिहास आदि में प्रवीण कर दिया।गोस्वामी तुलसीदास
तुलसीदास चारों धाम व कैलाश मानसरोवर की लम्बी यात्रा पूर्ण कर अंत में चित्रकूट पहुँचे। उनकी यह यात्रा मात्र तीर्थयात्रा नहीं थी, वे देश के विभिन्न भागों में समाज की दशा निकट से देखना चाहते थे। उन्होंने देखा कि हिन्दुओं के सब धर्म ग्रंथ संस्कृत भाषा में हैं। जिसे ज्यादातर लोग समझ नहीं पाते, धर्म का सच्चा और कल्याणकारी स्वरूप लोगों की आँखों से ओझल हो रहा है। समाज में अज्ञानता, अंधविश्वास, और छुआछूत जैसी कुप्रथाओं का बोलबाला हो गया है। देश के बड़े भूभाग पर मुसलमानों का शासन है व हिन्दू समाज पर घोर अत्याचार हो रहे हैं। विभिन्न मत-मतान्तरों में आपसी कटुता और द्वेष हिन्दुओं की एकता को तोड़ रहा है।गोस्वामी तुलसीदास
हिन्दू समाज की चिंताजनक स्थिति पर तुलसीदास ने गंभीर चिंतन किया। उनके मन में प्रेरणा जागी कि जनभाषा में रामकथा को लिखा जाये। सम्वत् 1631 की रामनवमी को तुलसीदास ने अपना अनुपम ग्रंथ ‘रामचरित मानस’ लिखना प्रारम्भ किया। इस महान् ग्रंथ का कुछ भाग काशी में तथा अधिकांश अयोध्या में लिखा गया। रामचरित मानस दो वर्ष सात मास और 26 दिन में पूरा किया गया। हताश, भ्रमित और अज्ञान के अंधकार में भटकते हुए हिन्दू समाज के लिये यह ग्रंथ सर्वरोगनाशक रसायन सिद्ध हुआ।
राम के चरित्र के माध्यम से तुलसीदास जी ने सामाजिक समरसता का संदेश दिया है। उनके विचार में किसी को नीच या अछूत मानना उस व्यक्ति का ही नहीं अपितु ईश्वर का तिरस्कार है। भीलनी, शबरी, केवट, निषादराज, जटायु, कागभुशुण्डि तथा वानर आदि वंचित समाज के प्रतिनिधि हैं। राम शबरी के जूठे बेर खाते हैं और कहते हैं-
जाति पांति कुल धर्म बड़ाई, धन बल परिजन गुन चतुराई । भगतिहीन नर सोहहि कैसा, बिनु जल वारिद देखिअ जैसा ॥ अर्थात् जाति-पांति, धन, परिवार, चतुराई आदि मेरे लिये कोई महत्व नहीं रखते। ऊँचे कुल, जाति वाला या धनवान व्यक्ति यदि भक्तिहीन है तो वह जलविहीन बादल के समान शोभाहीन होता है।
गोस्वामी तुलसीदास ने विनय पत्रिका, गीतावली, जानकी मंगल आदि लगभग एक दर्जन काव्य ग्रंथ लिखे परन्तु रामचरित मानस सबसे लोकप्रिय है। इसके आरम्भ में ही गोस्वामी जी ने लिखा, ‘नाना पुराण निगमागम सम्मतम्’ अर्थात् वेदों, शास्त्रों, पुराणों का सार ही इस ग्रंथ में प्रस्तुत किया गया है। रामचरित मानस का अनुवाद अनेक भारतीय व विदेशी भाषाओं में हुआ है। जनभाषा में लिखा गया यह ग्रंथ युगों-युगों तक हिन्दू जाति को प्रेरणा देता रहेगा व भक्तों के हृदय को आनन्दित करता रहेगा।
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