संघ का संगठनात्मक परिचय
कार्य के सर्वस्पर्शी, समाजव्यापी तथा सार्वभौमिक विस्तार तथा व्यवस्थित सँभाल की दृष्टि से शहरी क्षेत्रों में ‘बस्ती तथा ग्रामीण क्षेत्रों में ‘ग्राम’ नामक इकाई की रचना की गई है। सम्पूर्ण देश में क्षेत्र से लेकर बस्ती / ग्राम तक की रचना को जानना प्रत्येक कार्यकर्ता के लिए उपयोगी है। यह रचना स्थायी नहीं है, कार्य के विस्तार एवं आवश्यकतानुसार इसमें समय-समय पर परिवर्तन होते रहे हैं। आजकल सारे देश में 11 क्षेत्र तथा 38 प्रान्तों की रचना की गई है। #संघ का संगठनात्मक परिचय
क्षेत्र एवं प्रांत की रचना
क्र. | क्षेत्र | संघ रचनानुसार प्रान्त | शासकीय प्रदेश(राज्य ) |
1 | दक्षिण क्षेत्र | १-केरल २. तमिलनाडू उत्तर 2. तमिलनाडू दक्षिण | |
2 | दक्षिण पूर्व क्षेत्र | १. पश्चिम महाराष्ट्र २. पूर्व आंध्र, ३. दक्षिण कर्नाटक ४. उत्तर कर्नाटक | |
3 | पश्चिम क्षेत्र | १. कोकण २. पश्चिम आंध्र ३. देवगिरी ४. गुजरात ५. विदर्भ | |
4 | मध्य क्षेत्र | १. मध्य भारत २. महाकौशल ३. छत्तीसगढ़ | |
5 | उत्तर पश्चिम क्षेत्र | १. चित्ती २. जयपुर २. जोधपुर | |
6 | उत्तर क्षेत्र | १. दिल्ली २. पंजाब ३ हरियाणा ४. जम्मू-कश्मीर ५.हिमाचल | |
7 | पश्चिम उत्तर मध्य क्षेत्र | १. उत्तरांचल २. मेरठ २. ब्रज | |
8 | पूर्वी उत्तर मध्य क्षेत्र | १. कानपुर २. अवध ३. काशी ४. गोरक्ष | |
9 | उत्तर पूर्व क्षेत्र | १. उत्तर बिहार २. दक्षिण बिहार ३. झारखण्ड | |
10 | पूर्व क्षेत्र | १. उत्तर बंगाल २. दक्षिण बंगाल ३. उत्कल | |
11 | असम क्षेत्र | १. उत्तर असम २. दक्षिण असम |
प्रान्तों के अन्तर्गत विभाग, विभागों में जिले, जिलों के अन्तर्गत ग्रामीण दृष्टि से खण्ड – मण्डल – ग्राम तथा शहरी दृष्टि नगर-मण्डल- बस्ती से ग्राम तथा बस्ती में शाखाएँ और शाखाओं में गट की रचना भौगोलिक दृष्टि से की जाती है। मण्डल तथा बस्ती / ग्राम तक की इकाई तो प्रभात, सायं या रात्रि सभी शाखाओं में समान रहती है, किन्तु गट की रचना एक ही बस्ती में लगने वाली भिन्न-भिन्न प्रभात सायं शाखाओं में भिन्न-भिन्न रह सकती है। शाखा युक्त नगर तथा शाखाओं ग्रामों को मिलाकर शाखा स्थान कहा जाता है। जहाँ भी शाखा दृष्टि से नगर निगम / नगर पालिका नगर परिषद् हैं, उस स्थान को नगर की श्रेणी में रखा जाता है। (महानगरों में अपने कार्य की सुविधानुसार सामान्यतः 8-10 बस्तियाँ का एक नगर बनाया जाता है) #संघ का संगठनात्मक परिचय
विशेष – आजकल प्रान्त – जिला तथा खण्ड / नगर की प्रमुखतः क्रियान्वयन करने वाली तथा क्षेत्र व विभाग समन्वयात्मक भूमिका से कार्य करने की अपेक्षा की गई है। इसी क्रम में सबसे आधारभूत इकाई शाखा को सर्वाधिक मजबूत, समर्थ व स्वयं निर्णय में सक्षम बनाना अत्यावश्यक है। #संघ का संगठनात्मक परिचय
संघ का ऐतिहासिक विकास क्रम
(अ) संघ की पृष्ठभूमि
संघ संस्थापक डॉ. हेगडेवार जी अपने जीवनकाल में सामाजिक धार्मिक व राजनैतिक क्षेत्र में चलने वाले समकालीन सभी कार्यों से सम्बद्ध रहे। अनेक महत्त्वपूर्ण आन्दोलनों का अनुभव किया। उन्होंने सार रूप में कुछ बातें सामने रखीं-
- अपने समाज की कमजोरियों (स्वार्थपरता, अकेलेपन की भावना, देशभक्ति का अभाव, आत्महीनता, राष्ट्रीयता की भ्रामक कल्पना, संगठन का अभाव आदि) के कारण हम परतन्त्र हुए। #संघ का संगठनात्मक
- आत्म-गौरव समाप्त होने के कारण लोगों को हिन्दू कहने / कहलाने में लज्जा का अनुभव होता था । #संघ का संगठनात्मक
- देशभक्ति है भी, तो अँग्रेजों के विरुद्ध । देशभक्ति की भावात्मक कल्पना का अभाव है #संघ का संगठनात्मक
- संगठन के अभाव में विभिन्न आन्दोलन बीच में रुक जाते थे। #संघ का संगठनात्मक
- ,मुट्ठीभर लोगों से देश आजाद नहीं होगा, इसके लिये पूरे देश को खड़ा होना होगा। #संघ का संगठनात्मक
- देश का भाग्य हिन्दू के साथ जुड़ा है आदि। #संघ का संगठनात्मक
- अतः डॉ. साहब ने घोषणा की #संघ का संगठनात्मक
- भारत हिन्दू राष्ट्र है। शक्ति से ही सब कार्य सम्भव । #संघ का संगठनात्मक
- शक्ति संगठन में है। #संघ का संगठनात्मक
संघ स्थापना
अपने इन्हीं अनुभवों में से अपनी घोषणाओं के संदर्भ में उन्होंने निर्णय लिया कि देश की आजादी तथा राष्ट्र निर्माण के लिये विशुद्ध देशभक्ति से प्रेरित, व्यक्तिगत अहंकार से मुक्त, अनुशासित और चरित्रवान लोगों का संगठन आवश्यक है। ऐसा संगठन स्वतंत्रता आन्दोलन की रीढ़ तो बनेगा ही, देश व समाज पर आने वाली हर विपत्ति का सामना भी कर सकेगा। इसी विचार में से संघ का कार्य प्रारम्भ हुआ तथा डॉ. साहब ने संगठन के लिये ‘शाखा’ रूपी अभिनव पद्धति खोज निकाली। #संघ का संगठनात्मक
उस समय अनेक लोग कहते थे हिन्दू संगठन करना जिन्दा मेंडकों को तोलने के समान है परन्तु डॉ. साहब इन बातों से विचलित नहीं हुए। दृढ़ संकल्प के धनी होने के कारण संगठन और व्यक्ति निर्माण के कार्य हेतु ही उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया तथा अपने जीवन काल में ही हर प्रान्त में कार्य पहुँचा दिया। (कृतिरूप संघ दर्शन भी पठनीय) #संघ का संगठनात्मक
(आ) संघ का क्रमिक विकास एवं महत्त्वपूर्ण घटनाएँ
1. संघ की स्थापना विजयादशमी वि. सं. 1982 (27 सितम्बर, 1925) को पू. डॉक्टर जी ने 20-25 लोगों को लेकर की। इस दिन संघ के नाम, संविधान, पदाधिकारी, कार्यालय, साइन बोर्ड, अखबारी प्रचार, रसीद बही व चन्दे आदि की कोई चर्चा नहीं हुई। सभी नागपुर में महाराष्ट्र व्यायामशाला में जाते थे। रविवार को इतवारी दरवाजा पाठशाला में एकत्र होते थे। गुरुवार को ‘राजकीय वर्ग’ जो बाद में ‘बौद्धिक वर्ग कहा जाने लगा होता था। #संघ का संगठनात्मक
2. 17 अप्रैल 1926 को संघ को नाम मिला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ । रामटेक के मेले में यात्रियों के सहयोग हेतु प्रथम बार स्वयंसेवकों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाम से भाग लिया। #संघ का संगठनात्मक
3. 28 मई 1926 से मोहिते के बाड़े में विधिवत् दैनिक शाखा आरम्भ की गई। संख्या बढ़ने के कारण पथक (गण) बने। (बाला साहब देवरस आदि कई श्रेष्ठ कार्यकर्ताओं का कुश पथक’ के स्वयंसेवक होने का उदाहरण) #संघ का संगठनात्मक
4. 19 दिसम्बर 1926 को प.पू. डॉक्टर जी को औपचारिक रूप से संघ का प्रमुख चुना गया। #संघ का संगठनात्मक
5. 1927 में प्रथम बार संघ शिक्षा वर्ग लगा। प्रारम्भ में व्यायामशाला में जाने के कारण लाठी, तलवार, शूल आदि चलाने के कार्यक्रम चलने लगे। सेना का अनुशासन देखकर गणवेश व परेड (समता) का प्रचलन प्रारम्भ हुआ। #संघ का संगठनात्मक
6. गुरुपूर्णिमा 1985 वि. (सन् 1928) को गुरु रूप में भगवाध्वज का पूजन तथा प्रथम गुरु दक्षिणा इसी वर्ष प्रथम प्रतिज्ञा कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। #संघ का संगठनात्मक
7. 1926 में प्रथम शीत शिविर लगा। घोष के साथ संचलन निकला। संचलन गीत के रूप में झण्डा हिन्दू राष्ट्र का लोकप्रिय हुआ। #संघ का संगठनात्मक
8. 10 नवम्बर 1929 को संघस्थान पर प.पू. डॉक्टर जी को प्रथम बार सरसंघचालक प्रणाम दिया गया। प्रचारक परम्परा भी इसी समय प्रारम्भ हुई। औपचारिक रूप से 1932 में बाबा साहब आप्टे, दादा राव परमार्थ, रामभाई जामगढ़े व गोपाल राव येरकुंटवार प्रचारक होकर गए। #संघ का संगठनात्मक
9. 1930 में जंगल सत्याग्रह में भाग लेने का निश्चय कर डॉक्टर जी ने डॉ. परांजपे को सरसंघचालक नियुक्त किया। कारागार में रहकर भी अनेक नए कार्यकर्ता खड़े किये। #संघ का संगठनात्मक
10. 1934 में वर्धा शिविर में पूज्य महात्मा गाँधी पधारे। वहाँ स्वयंसेवकों में छुआछूत की भावना का सर्वथा लोप देखकर अत्यन्त प्रभावित हुए । #संघ का संगठनात्मक
11. 1939 में सिंदी बैठक में वर्तमान संस्कृत आज्ञाएँ व प्रार्थना निश्चित हुई। 1940 के संघ शिक्षा वर्ग में वे निर्णय लागू किये गए. प्रार्थना तभी से संस्कृत में। इससे पूर्व प्रार्थना मराठी तथा हिन्दी में मिलाकर थी। #संघ का संगठनात्मक
12. इक्कीस जून 1940 को डॉक्टर जी ने देहावसान से पूर्व श्री गुरुजी को सरसंघचालक मनोनीत किया। #संघ का संगठनात्मक
13. 1942 में सरकारी आदेश से सैनिक कार्यक्रमों पर पाबंदी लगने से नए-नए खेलों का समावेश हुआ। इसी समय गणवेश में परिवर्तन हुआ। सफेद कमीज, सफेद जूता व नीला मोजा आया। सन् 45 में फिर पोंगुली-पट्टी व लोंग बूट आया। 1974 में पुनः परिवर्तन। इसी तरह आवश्यकतानुसार शारीरिक कार्यक्रम भी बदलते रहे। सन् 77 के बाद नियुद्ध व योगचाप की नई पद्धति का समावेश हुआ। #संघ का संगठनात्मक
14. 1947 में देश विभाजन के परिणामस्वरूप विस्थापित बंधुओं की सहायतार्थ पंजाब में पंजाब रिलीफ कमेटी तथा असम बंगाल में वास्तुहारा सहायता समिति की स्थापना की गई। #संघ का संगठनात्मक
15. फरवरी 1948 को गाँधी जी की हत्या का निराधार आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबंध लगाया गया। इस पर पू. श्री गुरुजी द्वारा संघ को विसर्जित करने की घोषणा की गई। #संघ का संगठनात्मक
16. 9 दिसम्बर 1948 से संघ पर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए सरकार्यवाह मा. भैयाजी दाणी द्वारा दिल्ली में सत्याग्रह प्रारम्भ । 21 फरवरी 1949 को सत्याग्रह स्थगित। संघ पर से बिना शर्त प्रतिबंध हटा। इसी समय संघ का संविधान भी अस्तित्व में आया। #संघ का संगठनात्मक
17. पू. गुरुजी की प्रेरणा से संघ कार्य को सर्वव्यापी व सर्वस्पर्शी बनाने के लिए स्वयंसेवकों द्वारा विविध संगठनों का प्रारम्भ । #संघ का संगठनात्मक
18. 15 अगस्त 1940 को असम में भयंकर भूचाल तथा ब्रह्मपुत्र नदी में भयंकर बाढ़ आई। पीड़ितों की सहायतार्थ भूकम्प पीड़ित सहायता समिति का निर्माण। 1941 में बिहार में अकालग्रस्त सहायता समिति की स्थापना । #संघ का संगठनात्मक
19. 1953 में गौ-हत्या निरोध आन्दोलन। 1 मास में ही देश भर में लगभग पौने दो करोड़ हस्ताक्षर कराए। #संघ का संगठनात्मक
20. दूसरी चिन्तन बैठक, सिंदी -1954 1 21. 1960 इन्दौर में विभाग प्रचारकों की अ. भा. बैठक। 1963 स्वामी विवेकानन्द शताब्दी पूरे देश में मनाई गई तथा 68-69 में विवेकानन्द केन्द्र के लिये धन संग्रह किया गया। 1972 ठाणे में अ. भा. बैठक । #संघ का संगठनात्मक
22. 5 जून, 1973 को पू श्री गुरुजी का महाप्रयाण । 23. 6 जून, 1973 पूजनीय बालासाहब देवरस तृतीय सरसंघचालक बने। #संघ का संगठनात्मक
24. 5 जुलाई 1975 को संघ पर दूसरी बार प्रतिबंध लगाया गया। नवम्बर 1975 में जन संघर्ष समिति के आह्वान पर आपातकाल के विरोध में सत्याग्रह। 22 मार्च 1977 को संघ पर से बिना शर्त प्रतिबंध हटाया गया। #संघ का संगठनात्मक
सन् 1977 के पश्चात् जन-जागरण के विभिन्न कार्यक्रम, विदेशों में भी कार्य विस्तार। #संघ का संगठनात्मक
सन् 1975 में संघ के 50 वर्ष होने पर विशेष जन-जागरण सन् 1988-89 में पूज्य डॉक्टर हेडगेवार जन्म शताब्दी का वृहद आयोजन। नागपुर में पूर्व व वर्तमान प्रचारकों का भव्य कार्यक्रम पूरे देश में प्रचण्ड हिन्दू जागरण व सेवा कार्यों के लिये वातावरण का निर्माण सेवा कार्यों हेतु ट्रस्ट बनाकर धन-संग्रह 6 दिसम्बर 1902 को अयोध्या में गुलामी का कलंक हटने के बाद बौखलाई सरकार द्वारा संघ पर तीसरा प्रतिबंध (10 दिसम्बर)। न्यायाधिकरण के निर्णय द्वारा 4 जून को संघ प्रतिबंध से मुक्त पूरे देश में हिन्दू चेतना दिवस के आयोजन। #संघ का संगठनात्मक
11 मार्च 1994 को पूज्य बालासाहब देवरस द्वारा मा. रज्जू भैय्या की पूज्य सरसंघचालक के रूप में नियुक्ति अ. भा. प्रतिनिधि सभा, मार्च 2000 (नागपुर) में श्रद्धेय रज्जू भैय्या द्वारा नए सरसंघचालक के रूप में मा. सुदर्शन जी की नियुक्ति । श्रद्धेय सुर्दशन जी ने स्वास्थ्य के कारण से प.पू. सरसंघचालक के रूप में मा. मोहन जी भागवत को 21 मार्च, 2009 को यह दायित्व सौंप दिया। इस प्रकार कार्यपद्धति का विकास होता गया। कार्यक्रम बदले, किन्तु 1 घंटे का मिलन (शाखा) चलता रहा। मूल कार्य होने से इसमें अन्तर नहीं आया। कार्यपद्धति में आवश्यकतानुसार सहज परिवर्तन होता रहा। इस पद्धति की यही विशेषता है। #संघ का संगठनात्मक
सन् 2006-07 में प.पू. गुरुजी की जन्मशताब्दी वर्ष का आयोजन श्री गुरुजी ‘भारतमाता’ की साक्षात् जगज्जननी के रूप में वन्दना करते थे और समाज के साथ इतने समरस हो गए थे कि समाज की पीड़ा को अपने स्वयं की पीड़ा मानते थे। ऐसे प्रखर तेजस्वी, मनीषी, तपस्वी, अध्येता, विद्वज्जनक, चिन्तक, विचारक ऋषिवर की जन्म शताब्दी वर्ष 2006-2007 में मनाने का संघ ने निर्णय लिया। उसके लिए अखिल भारतीय तथा प्रान्तीय स्तर पर कार्य समितियों का गठन किया गया। इसके अन्तर्गत स्थान-स्थान पर हिन्दू सम्मेलनों का आयोजन हुआ जिसमें असंख्य हिन्दू समाज एकत्र आया। इसके अतिरिक्त समापन समारोहों में लाखों-लाख हिन्दू समाज के साथ अन्य समाज के लोग भी उपस्थित हुए। ऐसे महायोगी को शत्-शत् नमन्। #संघ का संगठनात्मक
(इ) स्वातंत्र्य संग्राम में संघ का योगदान
- प.पू. डॉक्टर जी का क्रान्तिकारी जीवन। #संघ का संगठनात्मक
- वीर सावरकर, राजगुरु, महर्षि अरविन्द, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आदि का डॉ. साहब व संघ को सहयोग तथा डॉ. साहब का उनको सहयोग । #संघ का संगठनात्मक
- हार्डिंग बम केस के समय प.पू. डॉक्टर जी का दिल्ली प्रवेश प्रतिबन्धित किया। #संघ का संगठनात्मक
- सारे देश में शाखाओं पर सन् 1930 को 26 जनवरी के दिन कार्यक्रम मनाकर पूर्ण स्वराज्य की माँग का समर्थन। • 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में संघ की हिस्सदारी। अनेकों स्वयंसेवक जेल गए। #संघ का संगठनात्मक
- अनेक भूमिगत नेताओं की व्यवस्था #संघ का संगठनात्मक
- गोवा विमुक्ति आन्दोलन में भाग वसन्तराव ओक, राजाभाऊ महाकाल, जगन्नाथ राव जोशी इत्यादि । #संघ का संगठनात्मक
- दादर नगर हवेली स्वतंत्रता हेतु सशस्त्र संघर्ष (2 अगस्त 1958) बिन्दुमाधव जोशी, सुधीर फडके, बाबा पुरंदरे इत्यादि 107 स्वयंसेवक पुणे से गए। #संघ का संगठनात्मक
- संघ संस्थापक का अंग्रेजी शासन के प्रति व्यवहार- उदा. मिठाई फँकी, सुरंग खोदी, वंदेमातरम् बोला, अंग्रेजी अधिकारी के सामने रास्ते से नहीं हटे आदि। #संघ का संगठनात्मक
- प. पू. डॉ. साहब को न्यायालय में उग्र भाषण पर 1 वर्ष का कठोर कारावास । #संघ का संगठनात्मक
- क्रांतिकारियों को शस्त्रों के आदान-प्रदान में सक्रिय सहयोग। अँग्रेजों द्वारा संघ पर मध्य प्रांत में सरकारी कर्मचारियों के शाखा जाने पर प्रतिबंध । #संघ का संगठनात्मक
- गुप्तचर विभाग की फाइलों में अंग्रेजों द्वारा संघ के बारे में खतरनाक टिप्पणियों। ये फाइलें अभी भी मौजूद हैं। नाना पालकर रचित डॉ. साहब की बड़ी जीवनी ‘डॉ. हेडगेवार चरित्र’ तथा श्री राकेश सिन्हा द्वारा लिखित “आधुनिक भारत के निर्माता डॉ केशव बलीराम हेडगेवार ” देखें)। #संघ का संगठनात्मक
- संघ प्रतिज्ञा में स्वतंत्रता का उल्लेख। आजादी से पूर्व संघ प्रतिज्ञा- हिन्दू राष्ट्र को स्वतंत्र कराने के लिए मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का घटक बना हूँ।” #संघ का संगठनात्मक
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