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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अध्ययन

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समता

Posted on March 28, 2023April 26, 2023 by student

आरएसएस की शाखा में समता का अभ्यास कैसे करे

समता

1.दक्ष

  1. एडियों मिली हुई तथा एक ही सीध में हो। पैरों के बीच 30 अंश का कोण। 1
  2. घुटने तने हुए शरीर सीधा एवम् दोनों पैरों पर समतोल हो ।
  3. कन्धे एक सीध में, सामने की ओर तथा जमीन से समानान्तर, थोडे पीछे और नीचे खींचे हुए जिससे सीना स्वाभाविक स्थिति में आगे की ओर रहे। भी
  4. हाथ शरीर से सटे हुए कन्धों से सीधे तने हुए। कलाइयाँ तनी हुई ।
  5. मुट्ठियाँ स्वाभाविक बँधी हुईं, उंगलियों के पिछले भाग जंघा से सटे हुए, अँगूठा सामने की ओर उंगलियों से तथा निकर की सिलाई से लगा हुआ एवं जमीन से लम्बवत् । #समता
  6. गर्दन तनी हुई एवम् सिर गर्दन पर समतोल हो ।
  7. दृष्टि सामने अपनी ऊँचाई पर हो।
  8. शरीर का भार दोनों पैरों पर समतोल तथा श्वसन- उच्छ्वसन हमेशा के समान स्वाभाविक हो । #समता

2.आरम्

दक्ष की अवस्था में तना हुआ बाँया पैर बाँयी ओर 30 से.मी. के अंतर पर रखना चाहिए, जिसमें शरीर का भार दोनों पैरों पर समान रहे। उसी समय दोनों हाथ पीछे ले जाकर दाहिनी हथेली बाँयी हथेली और अँगूठे के बीच तथा दाहिना अंगूठा बाँये अँगूठे के ऊपर रखें। दोनों हाथ तने हुए हों। उंगलियाँ जमीन की ओर खिंची हुई । #समता

3. स्वस्थ

इस स्थिति में पैरों को न हिलाते हुए अनुशासन का ध्यान रखकर शरीर की हलचल करने की अनुमति है। सावधान की सूचना मिलते ही आरम् की स्थिति में आना चाहिए। #समता

इस आज्ञा का प्रयोग यथावश्यकता शाखा में अवश्य हो जिससे आरम् की स्थिति का पालन ठीक से हो सके और आरम् में स्वस्थ के समान हलचल करने की प्रवृति दूर हो सके। स्वस्थ में भी बोलन नहीं #समता

  1. एकश संपत्

सभी स्वयंसेवक दक्ष करेंगे और शिक्षक के सामने तीन कदम अंतर पर एक पंक्ति में खड़े होंगे। पहला स्वयंसेवक शिक्षक के सम्मुख खड़ा होगा और उस स्वयंसेवक के बाँयी और शेष स्वयंसेवक खड़े होंगे। पहला स्वयंसेवक आरम् करेगा बाद में शेष स्वयंसेवक सम्यक लेंगे और अपनी दाहिनी ओर के स्वयंसेवक के आरम् करने के पश्चात् क्रमश आरम् करते जाएंगे। एक स्वयंसेवक 60 से. मी. स्थान घेरता है एक पंक्ति में खड़े रहते समय ऊँचाई के अनुसार खड़े रहना। #समता

ध्यातव्य एकशः सम्पत् की रचना से दक्षिण / वाम वृत्त कर प्रचल की आज्ञा देना उचित नहीं क्योंकि इस रचना में दो स्वयंसेवकों के मध्य 60 सेमी, अन्तर होता है, जिसमें 75 सेमी का कदम नहीं रखा जा सकता। अतः या तो द्वितति करा कर दक्षिण / वाम वृत्त कराना चाहिए अथवा प्रचल से पूर्व ‘अन्तर आज्ञा देकर पर्याप्त अन्तर करा लेना चाहिए। #समता

  1. पुरस् / प्रति / दक्षिण / वाम-सर-

आगे या पीछे जाते समय बाँये पैर से प्रारंभ करना चाहिए। किसी भी कृति में हाथ नहीं हिलेंगे । पुरस् / प्रति / दक्षिण / वाम सर की आज्ञा एक समय में चार कदम से अधिक अंतर के लिए नहीं देनी चाहिए। #समता

  1. एक (द्वि-त्रि- चतुष) पद पुरस् (प्रति) सर सब स्वयंसेवक – एक (दो, तीन या चार कदम आगे (पीछे) जायेंगे। प्रत्येक कदम 75 सेमी. होगा। #समता
  2. एक (द्वि-त्रि- चतुष) पद दक्षिण (वाम) सर 1 दाहिना (बाँया) पैर 30 से.मी. दाहिनी (बाँयी ओर रखकर उससे बाँया (दाहिना पैर मिलाएं (इस प्रकार प्रत्येक कदम पर काम करना ।) #समता
  1. 1) संख्या – दाहिनी ओर से 1,2,3,4,5,6, आदि संख्या क्रमशः अंतिम स्वयंसेवक तक ऊँची आवाज में दृष्टि सामने रखते हुए कहेंगे। 2) गण विभाग – एक दो, एक-दो के क्रम में संख्या कहेंगे। एक-दो-तीन एक-दो-तीन के क्रम में संख्या 3) अंश भाग कहेंगे। 4) गण भाग 1-2-3-4, 1-2-3-4 के क्रम में संख्या कहेंगे।
  2. एक तति से 1) द्विवति विषम क्रमांक दो कदम आगे जाएंगे। सम क्रमांक स्थिर रहेंगे। 2) त्रितति क्रमांक एक दो कदम आगे और क्रमांक तीन दो कदम पीछे जाएंगे। क्रमांक दो स्थिर रहेंगे। 3) चतुष तति – विषम क्रमांक के स्वयंसेवक दो कदम आगे जाने के पश्चात् ‘क्रमांक एक’ दो कदम और आगे तथा क्रमांक चार दो कदम पीछे जाएंगे। क्रमांक दो और तीन स्थिर रहेंगे। #समता
  1. एक तति -1) द्वितति से – विषम क्रमांक दो कदम पीछे जाएंगे। 2) त्रि तति से – क्रमांक एक, दो कदम पीछे; क्रमांक तीन, दो कदम आगे आकर, मूल पंक्ति में मिलेंगे। 3) चतुष् तति से ‘क्रमांक एक’ दो कदम पीछे और ‘क्रमांक चार दो कदम आगे आएंगे। पश्चात् आगे की विषम क्रमांक वाली पंक्ति दो कदम पीछे जाकर मूल पंक्ति में मिलेगी। #समता
  1. वर्तन (स्थिर स्थिति से) वर्तन की क्रिया तीन अंकों में पूर्ण होगी। तीन अंक प्रचल की गति से दिये जाएंगे। एक में विभागशः 1 का कार्य करना, दूसरे में उसी स्थिति में स्थिर रहना और तीसरे अंक में पैर मिलाना। विभागशः एक और दो के बीच रुकने के अवकाश को यति कहते हैं। अंकताल 1,1,2 प्रचलित करना । 1) दक्षिण (वाम) वृत् 1. शरीर और दोनों घुटने तने हुए रखकर दाहिनी (बाँई) एड़ी और बाँये (दाहिने) पंजे पर दाहिनी (बाँई) ओर मुड़ने के पश्चात् दाहिना (बाँया) पैर जमीन पर रखा हुआ और बाँई (दाहिनी) एड़ी उँची उठी हुई, शरीर दाहिने (बाँए) पैर पर तुला हो। 2. उपर्युक्त स्थिति में स्थिर रुकना 3. बाँय दाहिना पर से पैसे मिलना। 2) दक्षिणार्ध (वामार्ध) वृत् दक्षिण (आधा दक्षिण (वाम) वृत करना। 3) अर्धवृत् दक्षिण वृत के अनुसार दाहिनी ओर से 180 मुड़ना। #समता

10. मितकाल

  1. दक्ष स्थिति से बाँया पैर सामने जमीन से 15 से.मी ऊंचाई तक उठाकर (तलुआ जमीन से साधारणतः समानान्तर रहेगा। घुटना सामने उठा हुआ तथा हाथ बाजू में तने हुए और स्थिर रहेंगे। शरीर भी तना हुआ रहेगा।) तुरन्त ही दाहिने पैर से मिलाना और दाहिना पैर उठाना। #समता
  2. दाहिना पैर पटककर तुरन्त ही बाँया पैर उठाना। ‘मितकाल’ यह आज्ञा मिलते ही ऊपर लिखा काम करते रहना। यदि पैर ठीक न पड़ते हों तो कोई भी एक कदम लगातार दो बार उसी गति से जमीन पर पटकना चाहिए। मितकाल में हाथ नहीं हिलेंगे। #समता
  1. मितकाल से स्तम् और वर्तन
  1. स्तम्- दाहिना पैर जमीन पर आते समय आदेश मिलेगा उसके पश्चात् और एक बार बाँया दाहिना पैर पटकना ।
  2. वाम (दक्षिण) वृत् बाँया (दाहिना पैर जमीन पर आते समय आदेश मिलेगा। उसके पश्चात् दाहिना (बाँया) पैर पटकना बाँई (दाहिनी) दिशा में घुमाकर बाँया (दाहिना) पैर पटकना और उस दिशा में मितकाल प्रारम्भ करना।
  3. वामार्ध (दक्षिणार्ध) वृत् – ऊपर लिखी पद्धति से वामार्थ (दक्षिणार्ध) वृत् करना। #समता
  1. अर्धवृत् – बाँया पैर जमीन पर आते समय आदेश मिलेगा। उसके पश्चात् दाहिना पैर पटकना पश्चात् बाँया पैर दाहिने पैर के बाजू में कुछ तिरछा पटकना (दाहिने पैर के अंगूठे के पास बाँये पैर के तलुवे का गहरा भाग आएगा) पश्चात् दाहिने बाजू में मुड़कर दाहिना पैर बाँये के पास पटकना । (दोनों एड़ियाँ पास रहनी चाहिये तथा दाहिने पैर का पंजा अर्धवृत की दिशा में होगा) पश्चात् बाँया पैर पटकना फिर दाहिना पैर बी पटककर उस दिशा में मितकाल प्रारम्भ करना।

12. प्रचल से स्त और वर्तन

  1. स्तम् यह आदेश दाहिना पैर जमीन पर आते समय पश्चात् बाँया पैर आगे रखकर उससे दाहिना पैर मिला।
  2. वाम (दक्षिण) वृत बीए (दाहिने पैर पर आदेश मिलेगा। दाहिना (बाँया) पैर आगे रखकर इस समय हाथ शरीर से हुए रहेंगे) सामने की गति को रोकना बाँया (दाहिना पैर (दाहिनी ओर 75 से.मी. लंबा डालकर तथा दाहिना (बाँया) –सामने एवं बाँया (दाहिना हाथ पीछे लेकर चलना प्रारम्भ करना।
  3. अर्धवृत – बाए पैर पर आदेश मिलेगा। पश्चात् दाहिना पैर आगे डालकर गति रोकना पश्चात बाँया, दाहिना तथा बाया पैर “मितकाल में अर्धवृत् के समान पटकना (यह काम होने तक हाथ नहीं हिलेंगे) पश्चात् दाहिना पैर 75 से.मी. लंबा आगे बढ़ाना। बाँया हाथ सामने और दाहिना हाथ पीछे लेकर चलना प्रारम्भ करना। हाथ
  1. मितकाल बाँए पैर पर आदेश मिलेगा। पश्चात् दाहिना पैर आगे बढाकर बाँए पैर से मितकाल आरम्भ करना ।

13. दक्ष स्थिति से क्षिप्रचल बाँए पैर से दौड़ना प्रारम्भ करना। दोनों हाथ मुट्ठियाँ बंद रखकर सीने के सामने रहेंगे।

14. क्षिप्रचल से स्तम्, वर्तन और मितकाल

  1. स्तम्दा हिने पर आदेश मिलेगा और तीन कदम दौड़ कर चौथी बार दाहिना पैर बाँए पैर से मिलाकर रुकना ।
  1. वाम (दक्षिण) वृत् प्रचल में वर्तन के अनुसार करना ।

अर्धवृत् – बाँए पैर पर आज्ञा पूर्ण होगी। तीन कदम और दौड़कर प्रचल में अर्धवृत् के अनुसार करना (गति क्षिप्रचल की ही रहेगी। मितकाल बॉए पैर पर आज्ञा पूर्ण होगी। दाहिना पैर आगे बढ़ाकर बाँए पैर से क्षिप्रचल की गति से मितकाल प्रारम्भ करना मितकाल से क्षिप्रचल बाँए पैर पर आज्ञा पूर्ण होगी। दाहिना देर नहीं पटक कर बीए पैर से दौड़ना प्रारम्भ करना।

15. युज

1. पुरा युज् आगे का स्वयंसेवक (तति) स्थिर रहकर बाकी स्वयंसेवक (तति) आगे मिलेंगे। युज में हाथ नहीं मिलेंगे।

2. वाम गुज् बाँयी और का स्वयंसेवक (प्रतति) स्थिर रहकर बाकी स्वयसेवक (प्रतति) बाँयी और मिलेंगे।

दक्षिण युज् दाहिनी ओर का स्वयंसेवक (प्रतति) स्थिर रहकर बाकी स्वयंसेवक (प्रतति) दाहिनी ओर मिलेंगे। विस्तर स्वयंसेवकों के (तति के प्रतति के बीच बताया हुआ अंतर लेना। (विशेष जब पंक्ति में स्वयंसेवक एक दूसरे के बाजू में खड़े रहते हैं, तब उस पंक्ति को तति तथा जब एक के पीछे दूसरा, क्रम से खड़े रहते हैं, तब उसे प्रतति कहा जाता है।)

16. विश्रम् – तीसरा इस दक्षिणवृत् कर मन में चार अंक गिनकर स्थान छोड़ना ।

  1. विकिर -दक्षिणवृत् कर प्रणाम करना और मन में चार अंक गिनकर स्थान छोड़ना ।
  1. कदमों का अंतर प्रचल-75 से.मी. क्षिप्रचल 100 से. मी. मंदचल-75 से मी दीर्घपद 85 से.मी. ह्रस्वपद-50 से.मी (संचलन में अंतर ठीक करने के लिये इनका उपयोग होता है।) पार्श्वपद 30 से.मी
  1. गति प्रचल में एक मिनट में 120 कदम चलना चाहिये अर्थात् 120 x 75 से.मी = 9000 से.मी = 90 मीटर) क्षिप्रचल में एक मिनट में 180 कदम दौड़ना चाहिये (अर्थात् 180 x 100 = 180 मीटर) मदचल में एक मिनट में 60 कदम चलना चाहिए (अर्थात् 60 x 75 से.मी. = 45 मीटर)।

इसके लिए आप संघ की आधिकारिक वैबसाइट पर भी जा सकते है उसके लिए यहाँ क्लिक करे http://rss.org और हमारे पोर्टल से भी ले सकते है https://rsssangh.in

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