
परम पूजनीय श्री गुरुजी ने शाखा को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है
संगठित जीवन के लिये आत्मीयतापूर्ण सम्बन्ध और अनुशासनबद्ध रूप में कार्य करने की सिद्धता, दोनों आवश्यक हैं। इसीलिये हम लोगों ने प्रतिदिन, निश्चित स्थान तथा निश्चित समय पर एकत्रित होकर, भिन्न-भिन्न प्रकार से कार्यक्रमों के माध्यम से इन गुणों को प्राप्त करने का संकल्प किया है। किसी एक स्थान पर एकत्र आना, पवित्र ध्वज को प्रणाम करना, उसकी छत्रछाया में अनुशासन और आत्मीयता बढ़े ऐसे कार्यक्रमों का अभ्यास करना, फिर अपने ध्येय का स्मरण करने के लिये अपनी पवित्र प्रार्थना बोलना, ध्वज को प्रणाम कर, ध्वज को उस दिन के लिये विसर्जित कर अपने-अपने दैनिक जीवन के कार्यों को ध्येयानुरूप समर्पण भाव से करते रहने की प्रेरणा लेकर घर वापस जाना, अपने कार्य का स्वरूप है। इस प्रकार संगठित जीवन निर्माण करने के लिये हमने बड़ी सरल पद्धति सामने रखी है। इसे ही हम अपनी शाखा कहते हैं।
एक घंटे की शाखा का समय विभाजन
शाखा लगाना एवं उष्ण व्यायाम् -5 मिनट
अनिवार्य शारीरिक कार्यक्रम (सूर्य नमस्कार, प्रहार, समता)-15 मिनट
खेल-15 मिनट
वैकल्पिक शारीरिक कार्यक्रम / व्यायाम योग- 10 मिनट
(सप्ताह में (4-5 दिन)/ बौद्धिक कार्यक्रम /सुभाषित/ अमृत वचन, गीत (2-3 दिन)-10 मिनट
प्रार्थना, विकिर- 5 मिनट
प्रौढ़ शाखाओं के लिये समय सारिणी ( प्रास्ताविक रूपरेखा )
शाखा लगाना, विकिर करना-10 मिनट
शरीर संचालन, संधिव्यायाम, प्राणायाम-10 मिनट
योगासन+ सूर्य नमस्कार (4 दिन) /खेल + सूर्य नमस्कार (2 दिन)-15 मिनट
समता, संचलन-5 मिनट
बातचीत (3 दिन) ध्यान (1 दिन) आवर्तन ध्यान (2 दिन)-20 मिनट
कुल-60 मिनट
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