
संघ की रीति नीति : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
जैसे हर कुल की परम्परा होती है, वैसे ही संघ कार्य में कुछ परम्परायें निर्माण हुई हैं। इनका ही संघ की रीति नीति कहा जाता है। परम्परायें नियम नहीं है, फिर भी इनका संगठन के लिए नियमों से कम महत्व नहीं। परम्परायें अनुभूत प्रयोगों से निर्माण होती है। अतः इन्हें समझकर आगे बढ़ना हमारा दायित्व है। # संघ की रीति नीति
संघ की रीति नीति : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
1.व्यक्ति निष्टा नहीं तत्व निष्ठा ।
2. संघ कार्य पारिवारिक है – तद्नुरूप व्यवहार।
3. शुद्ध शात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है।
4. मर्यादित रूप में अपनी बात रखने की पद्धति (आपात काल के समय जेल के व्यवहार का पूज्य बालासाहब का उदाहरण) ।
5 गुणों की चर्चा सर्वत्र, न्यनूताओं की ऊपर के अधिकारी से।

संघ की रीति नीति : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
6. वेश-भूषा व खाने-पीने तथा व्यय करने में सादगी व मितव्ययता ।
7. समय- पालन का स्वभाव ।
8. स्वभाषा स्वभूषा एवं स्वदेशी का आग्र है।
9. कार्यक्रमों की शैली समय पालन, ताली न बजाना, बीच में से न उठना, धूमपान न करना, आमन्त्रित बन्धुओं को आत्मीयता व आदर देना।
10. स्वयंसेवक व समाज के सुख-दुःख में सम्मिलित होना तथा उदारता व सहयोग का भाव ।

11. आडम्बर रहित व्यवस्थायें ।
12. मौन संस्कार की पद्धति।
13. अन्तिम निर्णय सभी को मान्य, निर्णय एक का नही हम सबका है।
14. व्यक्तिगत जीवन में प्रसिद्धि न पाने वाला।
15. अधिकारी की इच्छा ही आज्ञा का भाव ।
16. बहस में न पड़कर कार्य की ओर ध्यान ।
17. अपने जिम्मे आये कार्य को हर स्थिति में पूरा करना ।# संघ की रीति नीति
संघ की रीति नीति : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

नई शाखा खोलने की पद्धति
सबसे पहले ग्राम अथवा बस्ती का चयन कर उस स्थान का समग्र विचार करना। (जनसंख्या, सामाजिक व भौगोलिक स्थिति, दृष्टिकोण, सम्पर्क सूत्र, आने-जाने के साधन, जाने वाले कार्यकर्ता का नाम व उसकी उपलब्धता, अनुकूलता, प्रतिकूलता, संघस्थान की उपलब्धता आदि का विचार करना।)
चयनित स्थानों पर प्रारम्भ में संघ के सभी छः उत्सव मनाना उत्सवों के माध्यम से एकत्रित स्थानीय बन्धुओं को संघ के विचारों से अवगत कराना तथा संघ कार्य गाँव/बस्ती की आवश्यकता है। ऐसा अनुभव कराना। एकत्र आये बन्धुओं में से अनुकूल बन्धुओं को सूचीबद्ध कर उनमें से तीन-चार सक्षम, सक्रिय व उत्साही बन्धुओं के माध्यम से संघ मण्डली तथा बाद में साप्ताहिक मिलन प्रारम्भ करना। इन्हीं बन्धुओं को निकट की शाखा के एकत्रीकरण या नैपुण्य वर्ग में भी बुलाना।
संघ मण्डली
- स्वयंसेवक अथवा कार्यकर्ता विहीन नये स्थानो पर मण्डली प्रारम्भ करना अपेक्षित है। ये स्थान नये, सम्पर्कित अथवा पूर्व शाखा स्थान भी हो सकते हैं।
- मास में न्यूनतम एक बार, निश्चित दिन, निश्चित समय और निश्चित स्थान पर एकत्रीकरण। संघ मण्डली का प्रमुख भी निश्चित करना चाहिये।
- संघ मण्डली में ध्वज व प्रार्थना आवश्यक नहीं।
- संघ मण्डली में शारीरिक, बौद्धिक अथवा हिन्दुत्व जागरण के कोई भी कार्यक्रम हो ‘ सकते हैं। कुछ समय बाद मण्डली को मिलन में बदलना चाहिये।
साप्ताहिक मिलन
- मण्डली व बन्द शाखा स्थान पर साप्ताहिक मिलन प्रारम्भ करना।
- साप्ताहिक मिलन का दिन, स्थान, समय व मिलन प्रमुख निश्चित करना। निकटस्थ शाखा से साप्ताहिक मिलन का ‘मिलन पालक’ निश्चित करना।
- प्रार्थना अनिवार्य है परन्तु ध्वज आवश्यक नहीं।
- मिलन, मण्डली प्रमुखों तथा पालकों का नियमित प्रशिक्षण होना चाहिये। मिलन को धीरे-धीरे शाखा में परिवर्तित करने का प्रयास हो। इसके लिये चयन कर मिलन के कार्यकर्ताओं को संघ शिक्षा वर्ग कराना।
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