संघ के सदस्य भोजन करने से पहले विशेष भोजन-पूर्व उच्चारणीय मंत्रों का पाठ करते हैं। यह मंत्र विभिन्न सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को उजागर करने का उद्देश्य रखता है और सदस्यों को भोजन को एक साधना और सेवा का अवसर मानने के लिए प्रेरित करता है। इस मंत्र के माध्यम से सदस्य अपने आहार को आदर्श तरीके से लेने और उसे समर्पित भावना के साथ सेवा करने का संकल्प लेते हैं।
भोजन मंत्र का उच्चारण सदस्यों को उनके आहार की महत्वपूर्णता और श्रद्धांजलि के साथ भोजन करने के लिए एक आदर्श संजीवनी तत्व में बदल देता है। यह संघ के सदस्यों को सामूहिक जीवन के साथी साधुता की भावना से युक्त करने में भी मदद करता है और उन्हें सामूहिक अनुशासन और सेवा के माध्यम से संघ के उद्देश्यों की पूर्ति में योगदान करने की प्रेरणा प्रदान करता है।
संघ मे भी जब सभी भोजन करते है तो भोजन -पूर्व उच्चारणीय मंत्र भोजन मंत्र पढ़ते है तभी भोजन करते है
भोजन मंत्र
ब्रह्मार्पणम् ब्रह्महविर् ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् । ब्रह्मैव तेन गन्तव्यम् ब्रह्मकर्म समाधिना । ।(गीता).
उपरोक्त पंक्ति का हिन्दी अनुवाद :
यज्ञ में आहुति देने का साधन (सुचि, सुवा, हाथ की मृगि, हंस, व्याघ्र आदि मुद्राएं) ‘अर्पण’ ब्रह्म है । ब्रह्म रूपी अग्नि में ब्रह्मरुप होमकर्ता द्वारा जो अर्पित किया जाता है, वह भी ब्रह्म ही है। उस ब्रह्म कर्म से ब्रह्म की ही प्राप्ति होती है।
ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्विनावधीतमस्तु। मा विद्विषावहै ।। ॐ शांतिः शांतिः शांतिः । (यजु उपनिषद्)
उपरोक्त पंक्ति का हिन्दी अनुवाद :
हम दोनों (गुरु और शिष्य) परस्पर मिलकर सुरक्षा करें। हम मिलकर खाएं (देश में कोई भूखा न रहे ) । हम देश में संगठन रूपी तपश्चर्या से उज्ज्वलित एवं प्रदीप्त हों। हम पठित एवं अध्ययनशील हों । परस्पर द्वेष न करें।
शान्ति हो ! शान्ति हो !! शान्ति हो !!!
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