
“संघ में एकात्मता मंत्र” एक आध्यात्मिक श्लोक है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सदस्यों को सामूहिक भावना, सेवाभाव, और एकता की भावना से युक्त करने के लिए पढ़ा जाता है। यह मंत्र विभिन्न समर्पण और एकता के मौद्रिक शब्दों का समावेश करता है जो संघ के सदस्यों को एक समृद्ध, समृद्ध और संगठित समाज की दिशा में मार्गदर्शन करता है। #एकात्मता- मन्त्र
मंत्र के पाठ के माध्यम से सदस्यों को समझाया जाता है कि वे एक-दूसरे के साथ संघ के उद्देश्यों और मूल्यों के प्रति कैसे समर्थन कर सकते हैं, और उन्हें एक सामूहिक साधना की भावना से जोड़ने का उत्साह मिलता है। #एकात्मता- मन्त्र
“संघ में एकात्मता मंत्र” का पाठ सुबह की शुरुआत में अभ्यासित किया जाता है, जिससे सदस्यों को एक नए दिन की शुरुआत में सकारात्मक भावना और समर्पण की भावना से युक्त किया जा सकता है। यह मंत्र संघ के आदर्शों और सिद्धांतों को ध्यान में रखता है और सदस्यों को इस संघ के साथी साधुता की भावना में लिपटने के लिए प्रेरित करता है। #एकात्मता- मन्त्र
एकात्मता- मन्त्र
यं वैदिका मन्त्रदृश: पुराणा, इन्द्रं यमं मातरिश्वानमाहुः ।
वेदान्तिनोऽनिर्वचनीयमेकं, यं ब्रह्मशब्देन विनिर्दिशन्ति ॥ 1 ॥
शैवा यमीशं शिव इत्यवोचन्. यं वैष्णवा विष्णुरिति स्तुवन्ति ।
बुद्धस्तथाऽर्हन्निति बौद्धजैनाः सत् श्री अकालेति च सिक्खसन्तः ॥ 2 ॥
शास्तेति केचित् प्रकृतिः कुमारः, स्वामीति मातेति पितेति भक्तया ।
यं प्रार्थयन्ते जगदीशितारं, स एक एव प्रभुरद्वितीयः ॥ 3 ॥
एकात्मता- मन्त्र का हिन्दी अर्थ
वह प्रभु एक ही है प्राचीन काल के मंत्रदृष्टा ऋषियों ने जिसे इन्द्र, यम, मातरिश्वन (पवन) कहकर पुकारा और जिस एक अनिर्वचनीय का वेदान्ती ब्रह्म शब्द से निर्देश करते हैं। शैव जिसकी शिव और वैष्णव जिसकी विष्णु कह कर स्तुति करते हैं, बौद्ध और जैन जिसे बुद्ध और अर्हत् कहते हैं, तथा सिख संत जिसे सत् श्री अकाल कहकर पुकारते हैं।
जिस जगत् के स्वामी को कोई शास्ता, तो कोई कुमारस्वामी कहते हैं, कोई जिसको स्वामी, माता, पिता कहकर भक्तिपूर्वक प्रार्थना करते हैं, वह प्रभु एक ही है और अद्वितीय है, अर्थात् उसका कोई जोड़ नहीं है।
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