संघ गीत सीखे ओर उनके अर्थ भी जाने बिलकुल फ्री
मातृ वंदना
वंदे जननी भारत धरणी
वन्दे जननी भारत-धरणी, शस्य-श्यामला प्यारी ।
नमो नमो सब जग की जननी, कोटि-कोटि सुतवारी ।।
उन्नत सुन्दर भाल हिमाञ्चल, हिममय मुकुट विराजे उज्ज्वल ।
चरण पखारे विमल सिंधु-जल, श्यामल अंचल धारी । । १ । ।
गंगा यमुना सिन्धु नर्मदा, देती पुण्य पियूष सर्वदा।
मथुरा माया पुरी द्वारिका, विचरे जहाँ मुरारी । । २ ।।
कल्याणी तू जग की मित्रा, नैसर्गिक सुषमा सुविचित्रा ।।
तेरी लीला सुभग पवित्रा, गुरूवर, मुनिवर-धारी । । ३ । ।
मंगल करणी संकट हरणी, दारिद्रहरणी विज्ञान वितरणी ।
ऋषि-मुनि शूरजनों की धरणी, हरती भ्रम-तम भारी । । ४ । ।
शक्तिशालिनी दुर्गा तू है, विभवपालिनी लक्ष्मी तू है ।
बुद्धिदायिनी विद्या तू है, सब सुख सिरजनहारी । । ५ । ।
जग में तेरे लिए जियेंगे, तेरा प्रेम पियूष पियेंगे ।
तेरी सेवा सदा करेंगे, तेरे सुत बल धारी । । ६ । ।
वन्दे जननी भारत- – धरणी, शस्य श्यामला प्यारी ।
नमो नमो सब जग की जननी, कोटि-कोटि सुतवारी ।।
संघ गीत
1.उन्नत सुन्दर भाल हिमाञ्चल, हिममय मुकुट विराजे उज्ज्वल: यह पंक्ति हिमाचल प्रदेश की सुंदरता को वर्णित करती है, जिसकी चोटियों पर उज्ज्वल मुकुट विराजमान है। #संघ गीत
2.चरण पखारे विमल सिंधु-जल, श्यामल अंचल धारी: यह विमल सिंधु-जल की प्रशंसा करती है और श्यामल अंचल को धारण करने वाली माता को स्तुति देती है। #संघ गीत
3.गंगा यमुना सिन्धु नर्मदा, देती पुण्य पियूष सर्वदा: इस पंक्ति में महान नदियों की महत्वपूर्णता को बताया गया है, जो सदैव पवित्र पानी देती हैं।#संघ गीत
4.कल्याणी तू जग की मित्रा, नैसर्गिक सुषमा सुविचित्रा: यह पंक्ति भूमि को जीवनदान देने वाली और सुंदरता से भरपूर बनाने वाली कल्याणी की स्तुति करती है।#संघ गीत
5.मंगल करणी संकट हरणी, दारिद्रहरणी विज्ञान वितरणी: इस पंक्ति में माता दुर्गा को संकटों को हरने वाली और ज्ञान का वितरण करने वाली कहा गया है।#संघ गीत
6.शक्तिशालिनी दुर्गा तू है, विभवपालिनी लक्ष्मी तू है: यह पंक्ति माता दुर्गा और माता लक्ष्मी की महत्वपूर्णता को बताती है।#संघ गीत
7.बुद्धिदायिनी विद्या तू है, सब सुख सिरजनहारी: यह पंक्ति बुद्धि और विद्या की महत्वपूर्णता को बताती है।#संघ गीत
8.जग में तेरे लिए जियेंगे, तेरा प्रेम पियूष पियेंगे: इस पंक्ति में भगवान के प्रेम और आशीर्वाद की मांग की जा रही है। #संघ गीत
9.तेरी सेवा सदा करेंगे, तेरे सुत बल धारी: इस पंक्ति में आत्मनिर्भर भक्तों की सेवा की बात की गई है। #संघ गीत
10.वन्दे जननी भारत-धरणी, शस्य-श्यामला प्यारी। नमो नमो सब जग की जननी, कोटि-कोटि सुतवारी।।: यह पंक्ति भारत माता की स्तुति करती है, जिसे सब जगहों में प्रेम किया जाता है और जिनकी संतानें अनगिनत हैं।”#संघ गीत
प्रार्थना के स्वर हमारे
प्रार्थना के स्वर हमारे प्राण की झंकार जननी ।
सामरसता में मिले हैं जन हृदय के तार जननी । ।
हिंदुकुश योगी शिला मिल ब्रह्मनद जा सिंधु से, जुट रहे हैं
संगठन की भूमि के आधार जननी ।।१।।
दर्पमद में झूमता है यह आत्म हन्ता विश्व है,
शांति का प्यासा मनुज है शक्ति से लाचार जननी । । २ । ।
जानते हैं सब हृदय में निर्बलों की शक्ति तुम शीघ्र चरणों में गिरेगा नम्र हो संसार जननी । । ३ । ।
संगठन के हम पथिक हैं वीरकर्मी पुत्र माँ, नित्य चढ़ता ही रहे माँ साधना का ज्वार जननी । । ४ । ।
संघ गीत
विश्व में गूंजे हमारी भारती
विश्व में गूंजे हमारी भारती, जन जन उतारें आरती ।
ललि फि धन्य देश महान, धन्य हिन्दुस्थान ।।
इस धरा की गोद में संसार की संस्कृति पली है।
हर शिखर की धवलता, इस देश की जिन्दादिली है।
सिंधु की हर लहर चरण पखारती नदियाँ सदा श्रृंगारती । ।
धन्य देश चल दिया मानी सिकन्दर, इस धरा पर टेक घुटने ।
शत्रु को डर जब लगेगा, इस वतन का शौर्य उठने ।
कुपित हो जब मातृ भूमि निहारती, रण- चण्डिका हुँकारती ।।
धन्य देश विश्व का हर देश जब भी, दिग्भ्रमित हो लड़खड़ाया।
लक्ष्य की पहचान करने, इस धरा के पास आया।
भूमि यह हर दलित को पुचकारती, हर पतित को उद्धारती ।।धन्य देश २
संघ गीत मातृ वंदना
यह पंक्तियाँ भारतीय समृद्धि और गरिमा को महसूस कराती हैं। पहले श्लोक में भारत की भरपूर संस्कृति और उच्चतम मानकों की महत्वपूर्णता को उजागर करता है, जो विश्व भर में गूंथी जाती है। दूसरे श्लोक में भारत को महान और धन्य मानते हुए इसे धन्य हिन्दुस्थान कहा गया है।
तीसरे श्लोक में भूमि की सुंदरता और उसकी जिन्दादिली को वर्णित किया गया है, जो हर शिखर की धवलता के समान है। यहां सिंधु नदी की सुंदरता को भी उजागर किया गया है।
चौथे श्लोक में भारत के वीरता और शौर्य की बात की गई है, जिसे आपके शत्रु को भयभीत करने का सामर्थ्य है। इसमें सामूहिक भावना और अपने मातृभूमि के प्रति समर्पण की भावना को बढ़ावा दिया गया है।
धन्य देश २ में भी भारत के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और सामाजिक आदर्शों को स्पष्टता से प्रस्तुत किया गया है। यह बताता है कि भूमि हर दलित और पतित को उद्धार करने के लिए सदैव तैयार है और इसे एक उदाहरणशील देश बनाने की कड़ी मेहनत कर रहा है।
इस प्रार्थना में शांति, एकता, और संगठन के महत्वपूर्ण तत्वों की महिमा गाई गई है। यह प्रार्थना मातृभूमि और संसार के साथीयों के प्रति समर्पित है और व्यक्ति को सकारात्मक दिशा में प्रेरित करने के लिए एक सांगत भावना को उत्तेजित करती है।
प्रार्थना का पहला स्त्रोत उन्हें समरसता और सामरिक एकता की बातें बताता है, जिससे व्यक्ति को आत्मशक्ति और संघर्ष की भावना प्राप्त होती है।
दूसरा स्त्रोत हिंदुकुश योगी शिला से लेकर संगठन के महत्वपूर्ण आधारों की चर्चा करता है और उन्हें एक सामूहिक विचारधारा की आवश्यकता का उल्लेख करता है।
तीसरा स्त्रोत मानवता की महत्वपूर्णता को बताता है और उन्हें अपने अदृढ़ हृदय के माध्यम से निर्बलों की सशक्तिकरण की दिशा में नेतृत्व करने का संकल्प करने के लिए प्रेरित करता है।
चौथा स्त्रोत वीरकर्मी पुत्रों के संगठन के बारे में है और माता को साधना की साधना के लिए एक आदर्श स्थान में रखता है। यह उत्कृष्टता और सेवा की भावना को बढ़ावा देता है।
इस प्रार्थना के माध्यम से, साधक समाज में समर्थन और सेवा के माध्यम से अपने प्रति, समूह, और मातृभूमि के प्रति अपना संकल्प सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित होता है।
भारतीय संस्कृति की स्तुति: संघ गीत
यह कविता “वन्दे जननी भारत-धरणी” भारतीय संस्कृति, प्राकृतिक सौंदर्य, और मातृभूमि के प्रति भक्ति का विशेष सारांश प्रस्तुत करती है।
प्राकृतिक सौंदर्य की महिमा: संघ गीत
पंक्तियों में हिमाचल के ऊँचे शिखरों, श्यामल अंचल की सुंदरता, और गंगा, यमुना, सिन्धु, नर्मदा की महिमा का उल्लेख है। यह दृश्य भारत की प्राकृतिक सौंदर्य और विविधता को प्रमोट करता है।
देवी रूप में स्तुति:संघ गीत
कविता माता दुर्गा और माता लक्ष्मी को शक्तिशालिनी, विभवपालिनी कहकर स्तुति देती है। इससे यह साबित होता है कि भारतीय साहित्य में देवी रूप में दिव्यता की महत्वपूर्ण भूमिका है।
भारतीय नदियों का महत्व:
गंगा, यमुना, सिन्धु, और नर्मदा को पुण्य पियूष कहने से सुझावित है कि ये नदियाँ धरती को शुद्धता और शान्ति का आभास कराती हैं।
भारतीय समृद्धि और सांस्कृतिक विरासत:
कविता भारतीय समृद्धि, सांस्कृतिक विरासत, और ऐतिहासिक नगरों को याद करने में समर्थ है, जैसे कि मथुरा, माया पुरी, द्वारिका। यह एक समृद्ध और समृद्धिशील भारत की चित्रणा करती है।
मातृभूमि के प्रति प्रेम:
कविता व्यक्ति के मातृभूमि के प्रति गहरे प्रेम और समर्पण को दर्शाती है। इसे “वन्दे जननी भारत-धरणी” का आदान-प्रदान माना जा सकता है, जिससे भारतीय समाज में एकता और समर्पण की भावना बढ़ती है।
कुलसमापन:
इस कविता के माध्यम से लोगों को भारतीय संस्कृति, प्राकृतिक सौंदर्य, देवी पूजा की महत्वपूर्णता, और मातृभूमि के प्रति समर्पण की महत्वपूर्णता का आदान-प्रदान है। इसका सारांश यह है कि भारतीय साहित्य में रूपित होने वाली रिच और विविधता को एक सामग्री में जोड़कर यह कविता एक विशेष प्रकार की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संदेश को साझा करती है।

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