बालगीत
नदिया न पिए कभी अपना जल, वृक्ष न खाए कभी अपना फल अपने तन को मन को धन को, देश को दे दे दान रे,
वो सच्चा इन्सान रे-211
चाहे मिले सोना चाँदी, चाहे मिले रोटी बासी, महल मिले बहु सुखकारी, चाहे मिले कुटिया खाली, प्रेम और संतोष भाव से, करता जो स्वीकार रे।।1।।
वो सच्चा इन्सान…
चाहे करे निन्दा कोई, चाहे कोई गुणगान करे, फूलों से सत्कार करे, काँटों की चिन्ता न करे, मान और अपमान ही दोनों, जिसके लिये समान रे ।।2।।
वो सच्चा इन्सान…
मुझको मिले दीपक सा तन, बाती बन हंसकर जलना, राष्ट्रधर्म की नौका को, भवसिंधु में खेते रहना, चन्दन सम उपकारी बनकर, करता जो उपकार रे।।३।।
वो सच्चा इन्सान
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