गणगीत
शाखा पुस्तिका उत्सव
गीत शील शक्ति प्रेम का हम
, भाव धारण कर चलें।
राष्ट्रहित का ध्येय उर ले, विजयपथ पर बढ़ चलें।
संघ पथ पर बढ़ चलें।
संघ की यह साधना है, हिन्दू-हिन्दू एक हो।
परस्पर सद्भाव उर में, एक मन सह चित्त हो
। संग खेलें मन विमल हो, हो सुसंस्कारित चलें।
राष्ट्रहित का ध्येय उर ले, विजयपथ पर बढ़ चलें ।।
संघ पथ पर बढ़ चलें ।। 1 ।।
भारती माता हमारी, सब इसी के पुत्र हैं।
भारती विकसित बनाने हेतु मन में चित्र हैं।
मन बसा यह चित्र सब, साकार करने मिल चलें।
राष्ट्रहित का ध्येय उर ले, विजय पथ पर बढ़ चलें ।।
संघ पथ पर बढ़ चलें।।2।।
वाणी का संयम संजोयें, परस्पर विश्वास से।
समरसता भाव उर ले, आपसी सहकार से।
ध्येय पथ की साधना की, पूर्ति हेतु सब चलें।
राष्ट्रहित का ध्येय उर ले, विजयपथ पर बढ़ चलें ।।
संघ पथ पर बढ़ चलें।।3।।
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